छूना है तो... खुद को छू कर आओ
~ आनंद किशोर मेहता
कुछ लोग पास आना चाहते हैं,
कुछ हमें समझना भी चाहते हैं,
लेकिन अक्सर वे अपने साथ एक लिबास लाते हैं —
चापलूसी का।
वे मीठे शब्दों से रास्ता बनाना चाहते हैं,
प्रशंसा के फूल बिछाकर रूह तक पहुँचना चाहते हैं,
पर वे यह भूल जाते हैं कि
रूह तक पहुँचने का रास्ता
कभी झूठ के फूलों से नहीं सजता।
मैं कोई ऐसा दरवाज़ा नहीं
जो दिखावे की चाबी से खुल जाए।
मैं कोई आईना नहीं
जो सिर्फ़ सुंदर चेहरों को पहचानता हो।
मैं वो धड़कन हूँ
जो केवल सच्चे दिलों की ताल पर बजती है।
मुझे छूना है?
तो पहले खुद को छूकर आओ।
अपने मन का आवरण हटाओ,
अपने विचारों को धोओ,
अपनी दृष्टि को स्वच्छ करो —
और फिर जब तुम आओगे
तो शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
तुम्हारी ख़ामोशी ही पर्याप्त होगी।
मैं वहाँ नहीं हूँ
जहाँ लोग ‘वाह-वाह’ के शोर में खो जाते हैं।
मैं वहाँ हूँ जहाँ मौन में आत्मा की सच्चाई बोलती है।
मैं वहाँ हूँ जहाँ आंखें झुकती हैं,
जहाँ दिल विनम्र होता है,
जहाँ मन खाली होता है
और भरा होता है सिर्फ़… एक निर्मल भाव से।
तो अगर सच में
तुम मुझे छूना चाहते हो,
तो चापलूसी को दरवाज़े पर ही छोड़ आओ —
क्योंकि इस भीतर की दुनिया में
सिर्फ़ सच्चाई को प्रवेश मिलता है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
छूना है तो...
~ आनंद किशोर मेहता
छूना है तो
झूठ की चादर उतार दे,
दिल को साफ़ कर
सच की महक बसा दे।
मैं कोई शख्स नहीं
जो दिखावे से पिघल जाए,
मैं रूह हूँ...
जो सिर्फ़ रूह से जुड़ पाए।
ना लफ़्ज़ों की मिठास चाहिए,
ना आँखों का छलावा,
बस तेरी नज़र में हो सच्चाई,
और मन में हो लगाव सादा।
ना नाम ले, ना तारीफ़ कर,
ना जुबां से कुछ कह,
बस ख़ामोशी से आ
और सच के साथ बह।
मैं वहाँ नहीं रहता
जहाँ चापलूसी के फूल खिलते हैं,
मैं वहाँ हूँ
जहाँ दिल खुद-ब-खुद झुकते हैं।
तो अगर छूना है मुझे,
तो पहले खुद को छु,
सच के पानी से धो,
फिर मेरे पास आ—
बिना बोले, बस हो।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
"मैं वहाँ नहीं हूँ जहाँ लोग दिखावा करते हैं — मुझे वहीं पाओगे जहाँ भाव निःस्वार्थ हों।"
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